[Bharata's lamentation and Rama's consolation.]
ततः पुरुषसिंहानां वृतानां तै स्सुहृद्गणैः।
शोचतामेव रजनी दुःखेन व्यत्यवर्तत।।2.105.1।।
ततः पुरुषसिंहानां वृतानां तै स्सुहृद्गणैः।
शोचतामेव रजनी दुःखेन व्यत्यवर्तत।।2.105.1।।
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