[Hanuman's confrontation with Lankini, the spirit of Lanka.]
स लम्बशिखरे लम्बे लम्बतोयदसन्निभे।
सत्त्वमास्थाय मेधावी हनुमान् मारुतात्मजः।।5.3.1।।
निशि लङ्कां महासत्त्वो विवेश कपिकुञ्जरः।
रम्यकाननतोयाढ्यां पुरीं रावणपालिताम्।।5.3.2।।
स लम्बशिखरे लम्बे लम्बतोयदसन्निभे।
सत्त्वमास्थाय मेधावी हनुमान् मारुतात्मजः।।5.3.1।।
निशि लङ्कां महासत्त्वो विवेश कपिकुञ्जरः।
रम्यकाननतोयाढ्यां पुरीं रावणपालिताम्।।5.3.2।।